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मुंबई (दानिश खान)अभिनेत्री दीपशिखा नागपाल को बस कुछ ही दिन मिलें और वो निकल पड़ती हैं एक नए रोमांचक और एडवेंचरस सफर पर। इस बार उन्होंने जिम कॉर्बेट और ऋषिकेश को चुना और वहां का अनुभव उनके लिए बेहद खास रहा। ‘कोयला’, ‘बादशाह’, ‘दिल्लगी’, ‘पार्टनर’ जैसी फिल्मों और ‘सोन परी’, ‘संतोषी मां’, ‘फिर लौट आई नागिन’ और मौजूदा शो ‘इश्क जबरिया’ जैसी टीवी शोज़ का हिस्सा रह चुकी दीपशिखा बताती हैं कि उन्हें अपने काम से प्यार है, लेकिन इस तरह की छुट्टियों की उन्हें बहुत जरूरत होती है।

 

वो बताती हैं, “जैसे ही मुझे पता चला कि ‘इश्क जबरिया’ में मेरा ट्रैक खत्म हो गया है, अगली सुबह ही मैं निकल गई। मेरी दोस्त ऋशीना, जो एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर हैं, हमेशा मुझसे कहती थीं, ‘जंगल चलो,’ और मैं कहती थी, ‘शूट छोड़कर कैसे जाऊं।’ जैसे ही शूट खत्म हुआ और उन्हें जिम कॉर्बेट जाना था, मैंने कहा, ‘मैं भी चल रही हूं।’ मैं ऋषिकेश भी जाना चाहती थी, तो दोनों जगहों का प्लान बन गया।”

 

वो आगे कहती हैं, “मैं मासी मारा (अफ्रीका) जा चुकी हूं—अब तक का सबसे शानदार सफारी अनुभव वहीं मिला था। लेकिन फिर भी मेरी तलाश जारी है। मैं प्रकृति के बेहद करीब हूं, आध्यात्मिक हूं और मानती हूं कि प्रकृति आपको ठीक कर देती है। सुबह 4 बजे उठना, सफारी पर जाना, चुप रहना, पक्षियों की आवाज़ सुनना—यह सब बेहद खूबसूरत है। हमने चार सफारी की, जिनमें से तीन में मैं गई और एक टाइगर भी देखा।”

 

यह उनकी पहली भारतीय सफारी थी। इसके बाद वह ऋषिकेश गईं। “मैंने वहां रिवर राफ्टिंग की, बीच गंगा में छलांग लगाई—मैं बहुत अच्छी तैराक नहीं हूं, लेकिन अपने डर को हराना चाहती थी। मैंने गंगा आरती में भाग लिया और ध्यान किया।”

 

यह ट्रिप उनके लिए बेहद खास रही। “यह ट्रिप पूरी तरह से एडवेंचर, रिलैक्सेशन और रोज़ की भागदौड़ से खुद को दूर करने के लिए थी। मैंने मसाज करवाए, मोबाइल से दूरी बनाई, और खुद को तनाव से अलग किया। मुझे लगता है हर किसी को ये करना चाहिए—मैं तो नियमित रूप से करती हूं, और शायद इसी वजह से आज मैं जैसी हूं, वैसी हूं।”

 

ऋषिकेश की यात्रा को दीपशिखा एक अलौकिक अनुभव मानती हैं। “जब मैं ऋषिकेश में थी, मेरी खिड़की से गंगा नदी दिखती थी। मन को शांति मिल रही थी, भावनाएं उमड़ रही थीं—आंखों में आंसू आ गए। अगले दिन बारिश हुई, मौसम बिल्कुल अनिश्चित था। मैं नीचे उतर गई और पेंटिंग शुरू कर दी। स्कूल और कॉलेज में पेंटिंग, उमर खैय्याम, क्रोशे वर्क, क्राफ्ट—यह सब मेरे लिए थेरेपी की तरह थे, भले ही उस समय हमने इसे थेरेपी न कहा हो।”

 

दीपशिखा मानती हैं कि इस तरह की ट्रिप उन्हें दोबारा ऊर्जा देती हैं। “ये ब्रेक मुझे इंस्पायर करता है। मैं कभी रिटायर नहीं हो सकती—मैं किसी सरकारी नौकरी में नहीं हूं। ये ब्रेक मुझे रिचार्ज करते हैं। मैं खुद से जुड़ती हूं, सोचती हूं मुझे क्या चाहिए, क्या नहीं चाहिए—मैं बस ठीक होती हूं।”

 

“यह पूरी तरह ‘मी टाइम’ होता है, और बेहद ज़रूरी। इससे मुझे रिलैक्सेशन मिलता है और जब मैं काम पर लौटती हूं, तो दोगुनी ऊर्जा के साथ। मैं हमेशा 200% देती हूं, लेकिन इन ब्रेक्स की वजह से मैं और बेहतर बनती हूं। हमारी कोई 9 से 5 की नौकरी नहीं होती, ना ही हर वीकेंड छुट्टी होती है—कभी शूट होता है, कभी नहीं—तो जो समय मिलता है, उसका सबसे अच्छा इस्तेमाल हमें खुद ही करना पड़ता है।”

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