पंडित मुस्तफा आरिफ और रईस ख़ान ने बुनियादी तौर पर कार्य करने पर दिया ज़ोर
मुंबई(शिब्ली रामपुरी) किसी भी समाज का भला जज्बाती बातें करके और बड़ी-बड़ी तकरीर करके भाषण देकर कभी भी ना तो हुआ है और ना हो सकता है जब तक बुनियादी तौर पर कार्य नहीं किया जाएगा और हर इंसान अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझेगा तब तक कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता है.
मशहूर विद्वान और समाजसेवी पंडित मुस्तफा आरिफ ने कहा कि अभी हाल ही में एक मुस्लिम विद्वान द्वारा एक मंच पर जिस तरह की बातें कही गई वो बेहद ही अफ़सोसनाक हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि मुफ्ती सलमान अज़हरी एक उच्च शिक्षित विद्वान हैं लेकिन उनके मुख से फूल झरने चाहिए थे मगर अफसोस उनके मुंह से जो शब्द निकले वह किसी को भी तकलीफ पहुंचा सकते हैं. एक इस्लामिक स्कॉलर की जबान से इस तरह के शब्दों का निकलना खुद उनको कटघरे में खड़ा करता है. पंडित मुस्तफा आरिफ कहते हैं कि मजहब ए इस्लाम का उद्देश्य अमन भाईचारे का पैगाम देना है ऐसी बात कहना है कि जिससे सामने वाला प्रभावित हो. दिलों से दूरियां समाप्त करके मोहब्बत कायम करना ही इस्लाम का मकसद है.
मशहूर समाजसेवी और सीनियर पत्रकार रईस अहमद खान कहते हैं कि जज्बाती बातें करके कब किस का भला हुआ है यह सबके सामने है. बरसों से जज्बाती बातें ही तो होती रही हैं जिसकी वजह से आज मुस्लिम समाज कितनी बदहाली के दौर से गुजर रहा है इसके बारे में ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है.
रईस खान कहते हैं कि जो लोग शिक्षा हासिल करने पर जोर देते हैं तो ऐसे लोग हकीकत में सराहनीय हैं लेकिन सवाल उन लोगों से है कि जो बहुत सारे गरीब बच्चों को पढ़ाने लिखाने की क्षमता रखते हैं मगर वह सिर्फ जज़्बाती(भावनात्मक)बातों तक ही सीमित होकर रह जाते हैं. सिर्फ यह सोचकर कि सरकार हमारे लिए कुछ करेगी तो इससे बदहाली दूर होने वाली नहीं है बल्कि सरकार के साथ-साथ हर इंसान को चाहे वह नेता हो या जिस भी क्षेत्र का हो उसको अपनी जिम्मेदारी को भली भांति समझते हुए पूरी ईमानदारी से निभाने की जरूरत है.