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(शिब्ली रामपुरी)

उत्तर प्रदेश के झांसी से जो दर्दनाक मामला सामने आया है जिसमें कई नवजात बच्चों की जान चली गई. उस घटना में याकूब मंसूरी नाम के एक मजदूर शख्स की तारीफ हर तरफ हो रही है क्योंकि याकूब मंसूरी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए वहां पर आग से कई बच्चों की जान बचाई लेकिन दूसरों की जान बचाने वाला यह मसीहा खुद अपनी जुड़वा दो बेटियों की जान नहीं बचा सका अगले दिन सुबह दोनों मासूम बच्चियों का शव मिला.

 

याकूब मंसूरी मजदूरी कर अपने परिवार का गुजर बसर करते हैं.हमीरपुर के रहने वाले मंसूरी एक सप्ताह से महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन चिकित्सा इकाई के बाहर सो रहा था, जहां उसकी दो नवजात जुड़वां बेटियां भर्ती थीं। अपनी पत्नी नज़मा के साथ याकूब ने बारी-बारी से जुड़वा बच्चों पर नज़र रखी।शुक्रवार की रात जब आग लगी, तो याकूब खिड़की तोड़कर यूनिट में घुस गया और जितने शिशुओं को बचा सका, उसने उन्हें बचाया। लेकिन अफसोस, जिन बच्चों को उसने बचाया उसमें उसकी दो नवाजत बेटियां शामिल नहीं थीं। जुड़वां लड़कियों के शवों की पहचान शनिवार को बाद में की गई। नज़मा और याकूब पूरे दिन अस्पताल के बाहर बैठे रहे, उनकी आंखें अविश्वास और दुख से भरी हुई थीं। याकूब मंसूरी ने जिस हौसले से दूसरे लोगों के बच्चों की जान बचाई वह सराहनीय और काबिले तारीफ है और इंसानियत का परचम बुलंद रखने का पैगाम देता है लेकिन दो मासूम बच्चियों को खोने का ग़म भी किसी पहाड़ से कम नहीं है.

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