दिल्ली:जमीयत उलेमा हिंद की बैठक में मौजूद उलेमा ने कहा कि हम यह बात साफ़ कर देना ज़रूरी समझते हैं कि इस तहख़ाने में कभी भी पूजा नहीं हुई थी, एक निराधार दावे को बुनियाद बनाकर ज़िला जज ने अपनी सर्विस के आख़िरी दिन बहुत ही आपत्चिजनक और निराधार फ़ैसला दिया है। इसी तरह आरक्योलोजीकल सर्वे की रिपोर्ट का भी हिंदू पक्ष ने प्रेस में एकतरफ़ा तौर पर रहस्योदघाटन करके समाज में बिगाड़ पैदा किया है हालाँकि अभी अदालत में न तो इस पर कोई बहस हुई है और न ही उस की पुष्टि। अभी इस रिपोर्ट की हैसियत मात्र एक दावे की है।
ज़िला अदालत के आदेश को प्रशासन ने जिस जल्दबाज़ी में लागू किया उस का स्पष्ट मक़सद मुस्लिम पक्ष के इस अधिकार को प्रभावित करना था कि वो हाईकोर्ट से तुरंत कोई रिलीफ़ न हासिल कर सके। इसी तरह हमारा मानना है कि ज़िला अदालत को भी मुस्लिम पक्ष को अपील का मौक़ा देना चाहिए था जो कि उस का क़ानूनी अधिकार था।
समस्या केवल ज्ञानवापी मस्जिद तक सीमित नहीं है, बल्कि जिस तरह मथुरा की शाही ईदगाह, दिल्ली की सुनहरी और अन्य मस्जिदों और देश भर में फैली हुई अनगिनत मसजिदों और वक़्फ़ की जायदादों पर लगातार निराधार दावे किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट इबादतगाहों से जुड़े 1991 के क़ानून पर चुप्पी साधे हुई है, उसने देश के मुसलमानों को गहरी चिंता में डाल दिया है।
इस दौरान मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी.मौलाना सय्यद अरशद मदनी,मौलाना सय्यद असद महमूद मदनी.असदुद्दीन उवैसी.डाक्टर सय्यद क़ासिम रसूल इलयास आदि मौजूद रहे .